Artificial Womb kya hai 2023 पिछले कुछ दिनों से अमेरिका में इस बात को लेकर काफी बहस चल रही है कि महिलाओं को अबॉर्शन का अधिकार दिया जाना चाहिए या नहीं। इस बीच विज्ञान जगत कुछ अलग प्रयास कर रहा है, दुनिया भर के वैज्ञानिक एक कृत्रिम गर्भाशय बनाने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि भ्रूण मां के गर्भ के बाहर एक बच्चे के रूप में विकसित हो। बताया जा रहा है कि वैज्ञानिक भी इस नए आविष्कार के करीब पहुंच गए हैं। लेकिन क्या यह सच होगा कि अब महिलाओं को कभी गर्भवती होने की जरूरत नहीं पड़ेगी और आर्टिफिशियल वॉम्ब से कई समस्याओं का एक साथ समाधान हो जाएगा।

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Artificial Womb की ज़रूरत क्यों है?
दरअसल, आज के समय में बच्चों को जन्म देने की प्रक्रिया महिलाओं के लिए कष्टदायक होती जा रही है। साथ ही कई बार बच्चे समय से काफी पहले पैदा हो जाते हैं। ऐसे में उनकी सेहत काफी कमजोर हो जाती है। इन्हें इनक्यूबेटर में रखना होगा। उनके कई अंग पूरी तरह से विकसित नहीं होते हैं, खासकर फेफड़े और उन्हें सांस लेने में भी दिक्कत होती है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि सरोगेसी को समाज में काफी स्वीकृति मिल रही है। इस तकनीक से लाखों लोगों को संतान सुख की प्राप्ति हो रही है, जो उन्हें पहले किसी कारण से नहीं मिल पा रही थी। कृत्रिम गर्भ समय से पहले जन्मे बच्चों की जान बचाने का जरिया बन सकता है। इससे कई जोड़ों को माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो सकेगा और वे सरोगेट गर्भ के झंझटों से मुक्त हो सकेंगे।
इसे जानवरों पर प्रयोग किए जा रहे हैं
ऐसे में इन बच्चों को आर्टिफिशियल वॉम्ब में रखकर बचाना आसान हो सकता है। फिलहाल भेड़ों पर इस तरह का प्रयोग सफल रहा है। लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि इंसानों को इसका इस्तेमाल करने में कम से कम दस साल लगेंगे। इससे पहले वैज्ञानिकों ने 11 दिनों तक आर्टिफिशियल वॉम्ब में चूहे के भ्रूण को सफलतापूर्वक पाला है। जानवरों पर प्रयोग करने का एक कारण यह भी है कि मानव गर्भ में भ्रूण और बच्चे के विकास का निरीक्षण करना संभव नहीं है। वैसे तो विभिन्न चरणों में सोनोग्राफी और भ्रूण की अन्य तकनीकों की मदद से बच्चों के विकास को समझने में काफी मदद मिली है।