श्रीलंका में आर्थिक संकट का कारण, वर्तमान समस्या आदि यहाँ जानें (Sri Lanka economic Crises Explained in Hindi)

श्रीलंका में आर्थिक संकट का कारण, वर्तमान समस्या और आगे की राह (Sri Lanka economic Crises Explained in Hindi). भुगतान (Balance of Payments) की समस्या संतुलन- BoP में आर्थिक संकट में है। ट्रांजेक्शन के लिए ट्रांजेक्शन करने के लिए चार्ज किया जाता है। संकट की स्थिति में संकट के संकट के समय, संकट के समय संकट के समय, संकट के समय स्थिति में भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

श्रीलंका में आर्थिक संकट का कारण

पृष्ठभूमि:

  • वर्ष 2009 में श्रीलंका जब 26 वर्षों से जारी गृहयुद्ध से उभरा तो युद्ध के बाद की उसकी जीडीपी वृद्धि वर्ष 2012 तक प्रति वर्ष 8-9% के उपयुक्त उच्च स्तर पर बनी रही थी।
  • लेकिन वैश्विक कमोडिटी मूल्यों में गिरावट, निर्यात की मंदी और आयात में वृद्धि के साथ वर्ष 2013 के बाद उसकी औसत जीडीपी विकास दर घटकर लगभग आधी रह गई।
  • गृहयुद्ध के दौरान श्रीलंका का बजट घाटा बहुत अधिक था और वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट ने उसके विदेशी मुद्रा भंडार को समाप्त कर दिया था, जिसके कारण देश को वर्ष 2009 में IMF से 2.6 बिलियन डॉलर का ऋण लेने के लिये विवश होना पड़ा था।
  • वर्ष 2016 में श्रीलंका एक बार फिर 1.5 बिलियन डॉलर के ऋण के लिये IMF के पास पहुँचा, लेकिन IMF की शर्तों ने श्रीलंका के आर्थिक स्वास्थ्य को और बदतर कर दिया।
श्रीलंका में आर्थिक संकट
श्रीलंका में आर्थिक संकट

हाल के आर्थिक झटके: 

  • कोलंबो के विभिन्न गिरिजाघरों में अप्रैल 2019 में हुई ईस्टर बम विस्फोटों की घटना में 253 लोग तो हताहत हुए ही, इसके परिणामस्वरूप देश में पर्यटकों की संख्या में तेज़ी से गिरावट आई जिससे उसके विदेशी मुद्रा भंडार पर भारी असर पड़ा।
  • वर्ष 2019 में सत्ता में आई गोटाबाया राजपक्षे की सरकार ने अपने चुनावी अभियानों में निम्न कर दरों और किसानों के लिये व्यापक रियायतों का वादा किया था।
  • इन अविवेकपूर्ण वादों की त्वरित पूर्ति ने समस्या को और बढ़ा दिया।
  • वर्ष 2020 में उभरे कोविड-19 महामारी ने स्थिति को बद से बदतर कर दिया, जहाँ-
  • चाय, रबर, मसालों और कपड़ों के निर्यात को नुकसान पहुँचा।
  • पर्यटकों के आगमन तथा राजस्व में और गिरावट आई।

सरकार के व्यय में वृद्धि के कारण वर्ष 2020-21 में राजकोषीय घाटा 10% से अधिक हो गया और ‘ऋण-जीडीपी अनुपात’ वर्ष 2019 में 94% के स्तर से बढ़कर वर्ष 2021 में 119% हो गया।

श्रीलंका का उर्वरक प्रतिबंध

  • वर्ष 2021 में सरकार ने सभी उर्वरक आयातों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया और श्रीलंका को रातों-रात 100% जैविक खेती वाला देश बनाने की घोषणा कर दी गई।
  • रातों-रात जैविक खादों की ओर आगे बढ़ जाने के इस प्रयोग ने खाद्य उत्पादन को गंभीर रूप से प्रभावित किया।
  • नतीजतन, श्रीलंका के राष्ट्रपति ने बढ़ती खाद्य कीमतों, मुद्रा का लगातार मूल्यह्रास और तेज़ी से घटते विदेशी मुद्रा भंडार पर नियंत्रण के लिये देश में एक आर्थिक आपातकाल की घोषणा कर दी।
  • विदेशी मुद्रा की कमी के साथ-साथ रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों पर रातों-रात आरोपित विनाशकारी प्रतिबंध ने खाद्य कीमतों को और बढ़ा दिया। मुद्रास्फीति का स्तर वर्तमान में 15% से अधिक है और इसके औसतन 17.5% रहने का अनुमान है, जिससे लाखों गरीब श्रीलंकाई गंभीर संकट की स्थिति में पहुँच गए 

श्रीलंका के वर्तमान आर्थिक संकट में भारत की सहायता

जहाँ आशंका जताई जा रही है कि गंभीर डॉलर संकट से ‘सॉवरेन डिफ़ॉल्ट’ और आयात-निर्भर देश में आवश्यक वस्तुओं की भारी कमी की स्थिति बन सकती है, इससे जूझ रहे पड़ोसी द्वीपीय-राष्ट्र को जनवरी 2022 से भारत उल्लेखनीय आर्थिक सहायता प्रदान कर रहा है।

वर्ष 2022 के आरंभ से भारत द्वारा 1.4 बिलियन डॉलर से अधिक का राहत प्रदान किया गया है जिसमें 400 डॉलर का ‘करेंसी स्वैप’, 500 डॉलर का ऋण स्थगन (loan deferment) और ईंधन आयात के लिये 500 डॉलर का ‘लाइन ऑफ क्रेडिट’ शामिल है।

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इसके साथ ही अभी हाल ही में भारत ने अभूतपूर्व आर्थिक संकट का सामना कर रहे श्रीलंका की मदद के लिये उसे 1 बिलियन डॉलर अल्पकालिक रियायती ऋण भी प्रदान किया है।

श्रीलंका की मदद करना भारत के हित में?

चीन से श्रीलंका का कोई भी मोहभंग हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ से श्रीलंकाई द्वीपसमूह को दूर रखने के भारत के प्रयास को सुगमता मिलेगी।

इस क्षेत्र में चीनी उपस्थिति और प्रभाव को नियंत्रित करना भारत के हित में है।

श्रीलंकाई लोगों की कठिनाइयों को कम करने के लिये भारत जहाँ तक न्यून-लागत सहायता प्रदान कर सकता हो, उसे प्रदान करना चाहिये, लेकिन साथ ही यह ध्यान में रखते हुए सावधानी से ऐसा किया जाना चाहिये कि उसकी सहायता का नज़र आना भी मायने रखता है।

श्रीलंका के लिए आगे की राह 

•श्रीलंका के लिये उपाय: जैसे ही कुछ आवश्यक वस्तुओं की कमी समाप्त होती है, जैसा सिंहल-तमिल नव वर्ष (अप्रैल के मध्य में) की शुरुआत से पहले होने की उम्मीद है, सरकार को देश के आर्थिक सुधार के लिये उपाय करने चाहिये।

•मौजूदा संकट से बुरी तरह प्रभावित क्षेत्रों के साथ ही युद्ध प्रभावित उत्तरी और पूर्वी प्रांतों के आर्थिक विकास के लिये एक रोडमैप बनाने हेतु सरकार को तमिल राजनीतिक नेतृत्व के साथ हाथ मिलाना चाहिये।

•घरेलू कर राजस्व को बढ़ाना और उधारी (विशेष रूप से बाहरी स्रोतों से सॉवरेन उधारी) को सीमित करने के लिये सरकारी व्यय को कम करने जैसे उपयुक्त कदम उठाने होंगे।

•रियायत और सब्सिडी संबंधी व्यवस्था के पुनर्गठन के लिये कड़े कदम उठाए जाने चाहिये।

भारत की सहायता का श्रीलंका पे असर

•भारत के लिये यह अविवेकपूर्ण होगा कि वह चीन को श्रीलंकाई क्षेत्र में अपना अधिग्रहण बढ़ाने का अवसर दे। भारत को श्रीलंका के लिये वित्तीय मदद, नीतिगत सलाह और भारतीय उद्यमियों की ओर से वहाँ निवेश की पेशकश करनी चाहिये।

•भारतीय व्यवसायों को आपूर्ति शृंखलाओं का निर्माण करना चाहिये जो चाय के निर्यात से लेकर सूचना प्रौद्योगिकी सेवाओं तक वस्तुओं एवं सेवाओं के विषय में भारतीय और श्रीलंकाई अर्थव्यवस्थाओं को आपस में सहयुक्त करे।

•किसी अन्य देश के बजाय भारत को आगे बढ़ते हुए एक स्थिर व मैत्रीपूर्ण पड़ोस का लाभ प्राप्त कर सकने के लिये श्रीलंका की मदद करनी चाहिये ताकि वह अपनी क्षमताओं को उपयोग कर सके।

अवैध शरण की रोकथाम: श्रीलंका से अवैध तरीकों से 16 व्यक्तियों के आगमन के साथ तमिलनाडु राज्य ने पहले ही इस संकट के प्रभाव को महसूस करना शुरू कर दिया है।

•वर्ष 1983 के तमिल-विरोधी नरसंहार के बाद तमिलनाडु लगभग तीन लाख शरणार्थियों का शरण-स्थल बना था।

•भारत और श्रीलंका दोनों के अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि वर्तमान संकट का उपयोग तस्करी और अन्य अवैध गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिये या दोनों देशों में भावनाओं को भड़काने के लिये नहीं किया जा सके।

‘आपदा में अवसर’: तनावपूर्ण संबंध न तो श्रीलंका के हित में हैं और न ही भारत के। एक अधिक बड़े देश के रूप में इसका उत्तरदायित्व भारत पर है; उसे अत्यंत धैर्य रखने की और श्रीलंका को और भी अधिक नियमितता व निकटता से संलग्न करने की आवश्यकता है।

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