परशुराम जयंती 2022: परशुराम का जन्म, कहानी, तिथि, समय, महत्व, शुभकामनाएं और उद्धरण व रोचक तथ्य | Parshuram Jayanti 2022 in Hindi

परशुराम जयंती 2022: परशुराम का जन्म, कहानी ,तिथि, समय, महत्व, शुभकामनाएं और उद्धरण व रोचक तथ्य | Parshuram Jayanti 2022 in Hindi.यहां आपको परशुराम जयंती 2022 की तारीख, समय, महत्व, इच्छाओं और उद्धरणों के बारे में जानने की जरूरत है।

Parshuram Jayanti 2022 कब है?

भगवान विष्णु के छठे अवतार को परशुराम के नाम से जाना जाता है। और इस साल परशुराम जयंती 03 मई, 2022 को पड़ रही है। हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार, भगवान परशुराम को अमर और आक्रामक अवतार माना जाता है जो पृथ्वी को बुरी शक्तियों से बचाता है। उनके अवतार ने पापी, विनाशकारी और अधार्मिक राजाओं को नष्ट करके पृथ्वी की रक्षा की, जिन्होंने संसाधनों को लूटा और राजाओं के कर्तव्यों की उपेक्षा की।

परशुराम का जन्म ऋषि जमदग्नि और रेणुका से हुआ था। वह एक विशेषज्ञ योद्धा और भगवान शिव के सबसे बड़े भक्त हैं। प्रबल पूजा और परशुराम की भक्ति को देखने के बाद, भगवान शिव ने उन्हें परशु नाम का एक युद्ध हथियार उपहार में दिया, जिसका अर्थ है कुल्हाड़ी। हथियार एक युद्ध हथियार है जिसका इस्तेमाल परशुराम ने क्षत्रियों की क्रूरता के खिलाफ किया था। परशुराम जयंती वैशाख मास की शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि को पड़ती है।

परशुराम का उत्सव और उसके अवतार के पीछे का उद्देश्य प्रदोष काल के दौरान किया जाता है। उस दिन का पालन किया जाता है जब तृतीया प्रबल होती है। राम और कृष्ण की तरह परशुराम की पूजा नहीं की जाती है, लेकिन उडुपी के पास पजाका के पवित्र स्थान पर एक प्रमुख मंदिर मौजूद है। भगवान परशुराम के मंदिर भारत के पश्चिमी तट पर स्थित हैं।

कल्कि पुराण के अनुसार, परशुराम श्री कल्कि के 10 वें और भगवान विष्णु के अंतिम अवतार के मार्शल गुरु हैं। रामायण के अनुसार यह भी माना जाता है कि परशुराम सीता और भगवान राम के विवाह समारोह में आए थे।

परशुराम का जन्म कब हुआ था?

प्राचीन काल में कन्नौज में गाधि नाम के एक राजा राज्य करते थे। उनकी सत्यवती नाम की एक अत्यन्त रूपवती कन्या थी। राजा गाधि ने सत्यवती का विवाह भृगुनन्दन ऋषीक के साथ कर दिया। सत्यवती के विवाह के पश्‍चात् वहाँ भृगु ऋषि ने आकर अपनी पुत्रवधू को आशीर्वाद दिया और उससे वर माँगने के लिये कहा। इस पर सत्यवती ने श्‍वसुर को प्रसन्न देखकर उनसे अपनी माता के लिये एक पुत्र की याचना की। सत्यवती की याचना पर भृगु ऋषि ने उसे दो चरु पात्र देते हुये कहा कि जब तुम और तुम्हारी माता ऋतु स्नान कर चुकी हो तब तुम्हारी माँ पुत्र की इच्छा लेकर पीपल का आलिंगन करना और तुम उसी कामना को लेकर गूलर का आलिंगन करना।

फिर मेरे द्वारा दिये गये इन चरुओं का सावधानी के साथ अलग अलग सेवन कर लेना। इधर जब सत्यवती की माँ ने देखा कि भृगु ने अपने पुत्रवधू को उत्तम सन्तान होने का चरु दिया है तो उसने अपने चरु को अपनी पुत्री के चरु के साथ बदल दिया। इस प्रकार सत्यवती ने अपनी माता वाले चरु का सेवन कर लिया। योगशक्‍ति से भृगु को इस बात का ज्ञान हो गया और वे अपनी पुत्रवधू के पास आकर बोले कि पुत्री! तुम्हारी माता ने तुम्हारे साथ छल करके तुम्हारे चरु का सेवन कर लिया है। इसलिये अब तुम्हारी सन्तान ब्राह्मण होते हुये भी क्षत्रिय जैसा आचरण करेगी और तुम्हारी माता की सन्तान क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मण जैसा आचरण करेगी।

इस पर सत्यवती ने भृगु से विनती की कि आप आशीर्वाद दें कि मेरा पुत्र ब्राह्मण का ही आचरण करे, भले ही मेरा पौत्र क्षत्रिय जैसा आचरण करे। भृगु ने प्रसन्न होकर उसकी विनती स्वीकार कर ली। समय आने पर सत्यवती के गर्भ से जमदग्नि का जन्म हुआ। जमदग्नि अत्यन्त तेजस्वी थे। बड़े होने पर उनका विवाह प्रसेनजित की कन्या रेणुका से हुआ। रेणुका से उनके पाँच पुत्र हुए जिनके नाम थे – रुक्मवान, सुखेण, वसु, विश्‍वानस और परशुराम।

माता पिता भक्त परशुराम का जीवन

श्रीमद्भागवत में दृष्टान्त है कि गन्धर्वराज चित्ररथ को अप्सराओं के साथ विहार करता देख हवन हेतु गंगा तट पर जल लेने गई रेणुका आसक्त हो गयी और कुछ देर तक वहीं रुक गयीं। हवन काल व्यतीत हो जाने से क्रुद्ध मुनि जमदग्नि ने अपनी पत्नी के आर्य मर्यादा विरोधी आचरण एवं मानसिक व्यभिचार करने के दण्डस्वरूप सभी पुत्रों को माता रेणुका का वध करने की आज्ञा दी।
अन्य भाइयों द्वारा ऐसा दुस्साहस न कर पाने पर पिता के तपोबल से प्रभावित परशुराम ने उनकी आज्ञानुसार माता का शिरोच्छेद एवं उन्हें बचाने हेतु आगे आये अपने समस्त भाइयों का वध कर डाला। उनके इस कार्य से प्रसन्न जमदग्नि ने जब उनसे वर माँगने का आग्रह किया तो परशुराम ने सभी को पुनर्जीवित होने एवं उनके द्वारा वध किए जाने सम्बन्धी स्मृति नष्ट हो जाने का ही वर माँगा।

पिता जमदग्नि की हत्या और परशुराम का प्रतिशोध

कथानक है कि हैहय वंशाधिपति का‌र्त्तवीर्यअर्जुन (सहस्त्रार्जुन) ने घोर तप द्वारा भगवान दत्तात्रेय को प्रसन्न कर एक सहस्त्र भुजाएँ तथा युद्ध में किसी से परास्त न होने का वर पाया था। संयोगवश वन में आखेट करते वह जमदग्निमुनि के आश्रम जा पहुँचा और देवराज इन्द्र द्वारा उन्हें प्रदत्त कपिला कामधेनु की सहायता से हुए समस्त सैन्यदल के अद्भुत आतिथ्य सत्कार पर लोभवश जमदग्नि की अवज्ञा करते हुए कामधेनु को बलपूर्वक छीनकर ले गया।

कुपित परशुराम ने फरसे के प्रहार से उसकी समस्त भुजाएँ काट डालीं व सिर को धड़ से पृथक कर दिया। तब सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने प्रतिशोध स्वरूप परशुराम की अनुपस्थिति में उनके ध्यानस्थ पिता जमदग्नि की हत्या कर दी। रेणुका पति की चिताग्नि में प्रविष्ट हो सती हो गयीं। इस काण्ड से कुपित परशुराम ने पूरे वेग से महिष्मती नगरी पर आक्रमण कर दिया और उस पर अपना अधिकार कर लिया। इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक पूरे इक्कीस बार इस पृथ्वी से क्षत्रियों का विनाश किया। यही नहीं उन्होंने हैहय वंशी क्षत्रियों के रुधिर से स्थलत पंचक क्षेत्र के पाँच सरोवर भर दिये और पिता का श्राद्ध सहस्त्रार्जुन के पुत्रों के रक्त से किया। अन्त में महर्षि ऋचीक ने प्रकट होकर परशुराम को ऐसा घोर कृत्य करने से रोका।

इसके पश्चात उन्होंने अश्वमेघ महायज्ञ किया और सप्तद्वीप युक्त पृथ्वी महर्षि कश्यप को दान कर दी। केवल इतना ही नहीं, उन्होंने देवराज इन्द्र के समक्ष अपने शस्त्र त्याग दिये और सागर द्वारा उच्छिष्ट भूभाग महेन्द्र पर्वत पर आश्रम बनाकर रहने लगे।

हैहयवंशी क्षत्रियों का विनाश

माना जाता है कि परशुराम ने 21 बार हैहयवंशी क्षत्रियों को समूल नष्ट किया था। क्षत्रियों का एक वर्ग है जिसे हैहयवंशी समाज कहा जाता है यह समाज आज भी है। इसी समाज में एक राजा हुआ था सहस्त्रार्जुन। परशुराम ने इसी राजा और इसके पुत्र और पौत्रों का वध किया था और उन्हें इसके लिए 21 बार युद्ध करना पड़ा था।

ऋषि वशिष्ठ से शाप का भाजन बनने के कारण सहस्रार्जुन की मति मारी गई थी। सहस्रार्जुन ने परशुराम के पिता जमदग्नि के आश्रम में एक कपिला कामधेनु गाय को देखा और उसे पाने की लालसा से वह कामधेनु को बलपूर्वक आश्रम से ले गया। जब परशुराम को यह बात पता चली तो उन्होंने पिता के सम्मान के खातिर कामधेनु वापस लाने की सोची और सहस्रार्जुन से उन्होंने युद्ध किया। युद्ध में सहस्रार्जुन की सभी भुजाएँ कट गईं और वह मारा गया।

तब सहस्रार्जुन के पुत्रों ने प्रतिशोधवश परशुराम की अनुपस्थिति में उनके पिता जमदग्नि को मार डाला। परशुराम की माँ रेणुका पति की हत्या से विचलित होकर उनकी चिताग्नि में प्रविष्ट हो सती हो गयीं। इस घोर घटना ने परशुराम को क्रोधित कर दिया और उन्होंने संकल्प लिया-“मैं हैहय वंश के सभी क्षत्रियों का नाश करके ही दम लूँगा”। उसके बाद उन्होंने अहंकारी और दुष्ट प्रकृति के हैहयवंशी क्षत्रियों से 21 बार युद्ध किया।

परशुराम जयंती 2022: दिनांक और समय

अक्षय तृतीया और परशुराम जयंती इस वर्ष एक ही दिन पड़ रही है। परशुराम जयंती वैशाख मास की शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि को पड़ती है।

  • परशुराम जयंती तिथि: मंगलवार, 3 मई, 2022
  • तृतीया तिथि का समय 03 मई, 2022 को सुबह 05:18 बजे शुरू होता है।
  • तृतीया तिथि का समय 04 मई 2022 को सुबह 07:32 बजे समाप्त होगा।

परशुराम जयंती 2022: अनुष्ठान

1.भगवान परशुराम की पूजा अन्य देवी-देवताओं की तरह नहीं की जाती है।

2.इसलिए इस दिन तुलसी, फल, फूल, चंदन और कुमकुम जैसे प्रसाद के माध्यम से लक्ष्मीनारायण पूजा की जाती है।

3.चूंकि परशुराम भगवान विष्णु के अवतार हैं, भक्त रात भर भक्ति गीतों और मंत्रों के साथ विष्णु सहस्रनाम का जाप करते हैं।

4.लोग परशुराम जयंती पर सुबह सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद समाप्त होने वाले दिन भर का उपवास भी रखते हैं।

5.वे ब्राह्मण और जरूरतमंदों को अनाज, कपड़े और अन्य सामान उपलब्ध कराने जैसे दान और दान भी करते हैं।

परशुराम जयंती 2022: शुभकामनाएं और उद्धरण

  • परशुराम जयंती की शुभकामनाएं! भगवान परशुराम आपको दुनिया की सारी खुशियां दे।
  • आपका स्वस्थ और सुखी जीवन हो और भगवान परशुराम आपको सफलता और खुशियाँ प्रदान करें।
  • यदि आपके पास दृढ़ संकल्प और जीवन पर ध्यान केंद्रित है, तो आप कभी भी पराजित नहीं हो सकते। आपको परशुराम जयंती की बहुत बहुत शुभकामनाएं!

परशुराम जयंती: भगवान परशुराम के बारे में जानने योग्य 10 रोचक बातें

1.परशुराम भगवान शिव के भक्त थे

2.उन्हें भगवान शिव से वरदान के रूप में परशु या कुल्हाड़ी जैसा हथियार मिला था

3.किंवदंतियों के अनुसार, भगवान शिव ने परशुराम को युद्ध की कला भी सिखाई थी

4.परशुराम के पिता ऋषि जमदगनी थे और उन्हें पहले योद्धा ब्राह्मण के रूप में जाना जाता है

5.किंवदंतियों का कहना है, भगवान शिव के हथियार से आशीर्वाद के बाद परशुराम को युद्ध में पराजित नहीं किया जा सकता था

6.माना जाता है कि परशुराम ने महाभारत के प्रसिद्ध पात्रों जैसे भीष्म, द्रोणाचार्य और यहां तक कि करण को हथियारों का उपयोग करने का कौशल सिखाया था।

7.यह भी माना जाता है कि वह अभी भी पृथ्वी पर रहते हैं और भगवान विष्णु के दसवें रूप कल्कि को युद्ध सिखाएंगे

8.भगवान शिव, भगवान राम, कृष्ण और अन्य देवताओं की तरह, परशुराम की पूजा नहीं की जाती है।

9.माना जाता है कि उनका जन्म इंदौर में जानापाव पहाड़ियों में हुआ था और पहाड़ी की चोटी पर अभी भी एक शिव मंदिर है जहाँ माना जाता है कि परशुराम ने भगवान शिव का ध्यान और पूजा की थी।

10.परशुराम के बारे में किंवदंतियां अक्सर क्रोध और हिंसा और क्रोध के दुष्परिणामों के बारे में बात करती हैं।

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