वट सावित्री व्रत कथा क्या है कैसे रखा जाता है? | वट सावित्री व्रत की कथा, पूजा विधि, आरती, महत्व, सामग्री आदि

आप सभी ने वट सावित्री कथा के बारे में जरूर सुना होगा लेकिन क्या आप वट सावित्री कथा की महत्व पूजा विधि तारीख शुभ मुहूर्त सामग्री की लिस्ट आदि जानते हैं।

क्या आप जानते हैं कि वट सावित्री कथा कैसे करनी चाहिए वट सावित्री कथा करने के क्या लाभ हैं और भी अधिक जानकारी जानने के लिए आप नीचे इस पोस्ट को पढ़ सकते हैं।

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वट सावित्री व्रत कथा क्या है?

वट सावित्री कथा एक सौभाग्य और संतान प्राप्ति के लिए की जाने वाली व्रत माना गया है। भारतीय संस्कृति में यह व्रत एक आदर्श नारी के लिए एक प्रतीक बन चुका है। लेकिन इस व्रत की तारीख को लेकर भगवती मत है।

भारतीय संस्कृति के अनुसार जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को यह व्रत करने का विधान है इसके  वहीं निर्णयामृत आदि के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या को व्रत करने की बात कही गई है।

2021 में वट सावित्री व्रत कथा कब है? | वट सावित्री व्रत 2021 in India

2021 में 9 जून को दोपहर 1:57 से लेकर 10 जून शाम को 4:20 तक अमावस्या की तिथि थी.
11 जून 2021 को वट सावित्री कथा का व्रत पारण यूपी और बिहार में किया गया था।
गूगल के अनुसार 24 जून 2021 को वट पूर्णिमा महाराष्ट्र में मनाई जाएगी।

गुरुवार, 24 जून
महाराष्ट्र में वट पूर्णिमा व्रत कथा 2021
तिथि भिन्न हो सकती है.

वट सावित्री व्रत कथा का उद्देश्य

जैसा कि इस कथा की तिथि को लेकर बहुत ही भिन्नता रहती है, लेकिन इस कथा का उद्देश्य एक ही है- इस कथा को करने से वृद्धि और पतिव्रत के संस्कारों का बढ़ावा होता है. यह व्रत शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से पूर्णिमा तक यह व्रत किया जाता है विष्णु भगवान को मानने वाले इस व्रत को पूर्णिमा के दिन करना ज्यादा हितकारी मानते हैं।

वट सावित्री व्रत में वट और सावित्री दोनों का बहुत अधिक महत्व माना गया है पीपल की तरह वट या बरगद के पेड़ का विशेष महत्व है पराशर मुनि के अनुसार वक्त मूल्य तोपों आशा ऐसा कहा गया है पुराणों में यह स्पष्ट किया गया है कि वोट में ब्रह्मा विष्णु और महेश तीनों भगवानों का निवास है।

वट यानी कि बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर पूजन व्रत कथा आदि सुनने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. वट वृक्ष अपनी विशालता के लिए भी अत्यधिक प्रसिद्ध है।
संभवत यह पूजा जेष्ठ मास की तपती धूप से लोगों की रक्षा करने के लिए भी बट के पेड़ के नीचे पूजा की जाती है, और बाद में यह धार्मिक परंपरा मैं बदल गई होगी।

वट सावित्री का व्रत कैसे रखा जाता है?

वट सावित्री व्रत कथा की पूजा विधि पुराण व साहित्य में दी गई है सौभाग्य के लिए क्या जाने वाला यह व्रत शादीशुदा नारियों के लिए आदर्श नारीत्व का प्रतीक माना गया है।

आपको पूजा से पहले जल्दी उठकर स्नान कर लेने के बाद लाल या पीले रंग की साड़ी पहन कर तैयार हो जाए. अब पूजा का सामान एक जगह रख ले. वट या बरगद के पेड़ के नीचे के स्थान को अच्छे से साफ कर कर वहां सावित्री सत्यवान की मूर्ति स्थापित कर देंगे, इसके बाद बरगद के पेड़ पर जल चढ़ाएं, इसके बाद पुष्प भीगा हुआ चना प्रसाद आदि चढ़ाएं. फिर वट वृक्ष के चारों और कच्चा धागा लपेट लपेट ए और तीन से सात बार परिक्रमा करें. इसके बाद हाथ में चना लेकर इस व्रत की कथा को सुनाई कथा सुनने के बाद भीगे हुए चने का बायना निकाले और उस पर कुछ रखकर रुपए रखकर अपने सासू मां को दें।
पूजा के पश्चात ब्राह्मण देवता को वस्त्र व फल आदि दान करें।

वट सावित्री व्रत की कथा

वट वृक्ष याने की बरगद का वृक्ष का पूजन और सावित्री-सत्यवान की कथा का स्मरण करने के विधान के कारण ही यह व्रत वट सावित्री व्रत के नाम से प्रसिद्ध हुआ. सावित्री भारतीय संस्कृति के हिसाब से ऐतिहासिक चरित्र माना गया है, सावित्री का अर्थ वेद माता गायत्री और सरस्वती भी होता है.

ऐसा माना जाता है कि सावित्री का जन्म बेहद अजीब परिस्थितियों में हुआ था, कहते हैं कि भद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान नहीं थी, उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए मंत्र उच्चारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतिया दी थी. 18 वर्षों तक यह पूजा जारी रखें, इसके बाद सावित्री देवी ने प्रकट होकर वर दिया कि राजन तुझे एक तेजस्वी कन्या पैदा होगी. सावित्री देवी की कथा कृपा से जन्म लेने की वजह से कन्या का नाम सावित्री रखा गया।

कन्या बड़ी होकर बेहद ही रूपवान होती है. योग्य वर ना मिलने की वजह से सावित्री के पिता दुखी होते हैं. उन्होंने कन्या को स्वयंवर तलाश ने के लिए भेजा. सावित्री तपोवन में भटकने लगी, वहां साल देश के राजा रहते थे। उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में उनका वर्णन किया.

कहते हैं कि साल देश पूर्वी राजस्थान में अलवर के आसपास था. सत्यवान अल्प आयु के थे, वह वेद ज्ञाता भी थे. नारद मुनि ने सावित्री से मिलकर सत्यवान से विवाह न करने की सलाह दी, परंतु सावित्री सत्यवान से ही विवाह रचाया. पति की मृत्यु की तारीख आने पर जब कुछ दिन शेष रह गए तब सावित्री ने घोर तपस्या की थी जिसके फल उन्हें अपने पति की लंबी आयु के रुप में बाद में मिला था।

सावित्री की निष्ठा और पतिपरायणता को देख कर यमराज ने सावित्री से कहा कि हे देवी, तुम धन्य हो। तुम मुझसे कोई भी वरदान मांगो।

1) सावित्री ने कहा कि मेरे सास-ससुर वनवासी और अंधे हैं, उन्हें आप दिव्य ज्योति प्रदान करें। यमराज ने कहा ऐसा ही होगा। 

2) सावित्री बोलीं हमारे ससुर का राज्य छिन गया है, उसे पुन: वापस दिला दें।

3) इस पर सावित्री ने 100 संतानों और सौभाग्य का वरदान मांगा।

वट सावित्री व्रत कथा पूजा सामग्री | वट सावित्री व्रत में क्या क्या लगता है?

व्हाट्सएप फ्री व्रत कथा में आपको सावित्री सत्यवान की मूर्तियां अगर हो तो लक्ष्मी नारायण व शिव पार्वती की मूर्तियां रखें।
बांस का पंखा, लाल कलावा, धूप, दीप, फल, पुष्प, रोली, सुहाग का सामान, प्रसाद, बरगद का फल, जल से भरा हुआ कलश आदि.

वट सावित्री व्रत पूजा की विधि | वट सावित्री व्रत कैसे करना चाहिए | वट सावित्री व्रत एवं पूजन विधि

  • सबसे पहले पूजा के स्थान पर अच्छी सी रंगोली बना लें, उसके बाद पूजा की सामग्री वहां पर रख दें.
  • अपने पूजा स्थल पर एक चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाए उस पर लक्ष्मी नारायण और शिव पार्वती की मूर्ति रखें या फोटो रख सकते हैं.
  • पूजा स्थल पर तुलसी का पौधा रखें.
  • अब सबसे पहले गणेश जी और माता गौरी की पूजा आराधना करें. उसके बाद ही बरगद के वृक्ष, वट वृक्ष की पूजा करें।
  • पूजा में जल, मौली, रोली, सूत का धागा, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप आदि का प्रयोग करें. भिगोए हुए चना, वस्त्र और कुछ धन अपनी सास को दे कर आशीर्वाद प्राप्त करें.
  • सावित्री सत्यवान की कथा का पाठ करें और अन्य सभी लोगों को भी सुनाएं.
  • निर्धन सुहागन को सुहाग की सामग्री दान में देवें।

वट सावित्री कथा किन राज्य में मनाई जाती है

वट सावित्री व्रत कथा भारत के कई राज्य में मनाई जाती है जैसे कि पंजाब हरियाणा दिल्ली उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश और उड़ीसा आदि इसके अलावा महाराष्ट्र गुजरात और दक्षिणी भारतीय इलाकों में 15 दिन के बाद यानी जेष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को वट सावित्री व्रत कथा रखी जाती है।

वट सावित्री व्रत कथा का महत्व

  • वट सावित्री व्रत कथा सौभाग्य प्रदान करने वाली कथा होती है। भारतीय धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता सावित्री अपने पति के प्राणों को यमराज से छुड़ाकर वापस लेकर आई थी इसलिए इस व्रत का विशेष मेहनत महत्व सुहागन स्त्रियों के लिए माना गया है माना जाता है।
  • इस व्रत को करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
  • व्रत यह व्रत संतान प्राप्ति के लिए भी किया जाता है।
  • इस व्रत को करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

वट सावित्री व्रत कथा आरती | Vat Savitri Aarti | वट सावित्री व्रत कथा pdf | वट सावित्री व्रत आरती हिंदी

अश्वपती पुसता झाला।। नारद सागंताती तयाला।। अल्पायुषी सत्यवंत।। सावित्री ने कां प्रणीला।।
आणखी वर वरी बाळे।। मनी निश्चय जो केला।।
आरती वडराजा।।1।।

दयावंत यमदूजा। सत्यवंत ही सावित्री।
भावे करीन मी पूजा। आरती वडराजा ।।धृ।।
ज्येष्ठमास त्रयोदशी। करिती पूजन वडाशी ।।
त्रिरात व्रत करूनीया। जिंकी तू सत्यवंताशी।आरती वडराजा ।।2।।

स्वर्गावारी जाऊनिया। अग्निखांब कचळीला।।
धर्मराजा उचकला। हत्या घालिल जीवाला।
येश्र गे पतिव्रते। पती नेई गे आपुला।।
आरती वडराजा ।।3।।

जाऊनिया यमापाशी। मागतसे आपुला पती। चारी वर देऊनिया।
दयावंता द्यावा पती।आरती वडराजा ।।4।।

पतिव्रते तुझी कीर्ती। ऐकुनि ज्या नारी।।
तुझे व्रत आचरती। तुझी भुवने पावती।।
आरती वडराजा ।।5।।

पतिव्रते तुझी स्तुती। त्रिभुवनी ज्या करिती।। स्वर्गी पुष्पवृष्टी करूनिया।
आणिलासी आपुला पती।। अभय देऊनिया। पतिव्रते तारी त्यासी।। आरती वडराजा ।।

वट सावित्री व्रत अमावस्या कब है

वट सावित्री व्रत हर साल ज्येष्ठ मास के अमावस्या को रखा जाता है।

वट सावित्री व्रत में क्या खाना चाहिए

वट सावित्री व्रत कथा को काले चने से व्रत खोला जाता है जाता है और सुबह शाम कर साफ करके थाली में रख दिया जाता है पूजा होने के बाद आप काले चने को खाकर व्रत खोल सकते हैं. इसके अलावा आम का मुरब्बा बना कर भी खा सकते हैं।
खरबूजे का इस व्रत में बहुत अधिक महत्व है। आमतौर पर खरबूजा इस व्रत कथा में इस्तेमाल किया जाता है पूजा खत्म होने के बाद आप खरबूजा खा कर भी व्रत खोल सकते हैं।



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